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जान पाए क्या अपना मन? / भावना सक्सैना
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टुकड़े टुकड़े बेचा जीवन
बेच दिया सारा ही मन
मुस्कानें तो बेची ही थी
बेच दिए सब दर्द गहन।
सायों में लिपटे कुछ पल थे
गुँथी हुई पीड़ा थी सघन
खुले आम नीलाम किये सब
बाज़ार धर दिया देह कफ़न।
नग्न आत्मा ले फिरते अब
किससे क्या पा जाओगे
जीवन बीता अर्थहीन सा
जान पाए क्या अपना मन?