अम्मा को अब भी है याद / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
नाना खेतों में देते थे,
कितना पानी कितना खाद।
अम्मा को अब भी है याद।
उन्हें याद है तेलन काकी,
सिर पर तेल रखे आती थीं।
दीवाली पर दिये कुम्हारिन,
चाची घर पर रख जाती थीं।
मालिन काकी लिये फुलहरा,
तीजा पर करती संवाद।
अम्मा को अब भी है याद।
चना चबेना नानी कैसे,
खेतों पर उनसे भिजवातीं।
उछल कूद करते-करते वे,
रस्ते में मस्ताती जातीं।
खुशी-खुशी देकर कुछ पैसे,
नानाजी देते थे दाद।
अम्मा को अब भी है याद।
खलिहानों में कभी बरोनी,
मौसी भुने सिंगाड़े लातीं।
उसी तौल के गेहूँ लेकर,
भरी टोकनी घर ले जातीं।
वही सिंगाड़े घर ले जाने,
अम्मा सिर पर लेतीं लाद।
अम्मा को अब भी है याद।
छिवा छिवौअल गोली कंचे,
अम्मा ने बचपन में खेले,
नाना के संग चाट पकौड़ी,
खाने वे जातीं थीं ठेले।
छोटे मामा से होता था,
अक्सर उनका वाद विवाद।
अम्मा को अब भी है याद।
नानी थी धरती से भारी,
नाना थे अंबर से ऊँचे।
हँसते हँसते बतियाते थे,
सब दिन उनके बाग़ बगीचे।
घर आँगन में गूँजा करते,
हर दिन खुशियों से सिंह नाद।
अम्मा को अब भी है याद