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संस्कार की ज्ञान संपदा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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डांट-डांट कर पापाजी ने,
मम्मी से हिन्दी बुलवाई।
वैसे तो मेरी मम्मी को,
अच्छी हिन्दी आती है।
पता नहीं अंग्रेज़ी में क्यों,
वह घर में बतियातीं हैं।
बार-बार पापा समझाते,
घर में हिन्दी बोलो भाई।
गपड़-गपड़ अंग्रेज़ी भाषा,
में भैया भी बतियाते।
इसी बात पर दादाजी अब,
उन्हें डांटते गरियाते।
बड़े-बुजुर्गों के सम्मुख वह,
करते रहते बेशरमाई।
अंग्रेजी का भान हमें हो,
यह तो यूं आवश्यक है।
किंतु हमारे अवचेतन पर,
हिन्दी का पहला हक़ है।
संस्कार की ज्ञान संपदा,
हिन्दी में ही हम तक आई।