भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रूठी बिन्नू / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:39, 8 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रूठी-रूठी बिन्नू सेरी,
रूठ गए हैं भैयाजी।
बिन्नू कहती टिकट कटा दो,
हमें रेल से जाना है।
पर भैया क्या करे बेचारा
खाली पड़ा खजाना है।
कौन मनाए रूठी बिन्नू,
कोई नहीं सुनैयाजी।
बिन्नू कहती ले चल मेला,
वहाँ जलेबी खाऊंगी।
झूले में झूला झूलूंगी,
बादल से मिल आऊंगी।
मेला तो दस कोस दूर है,
साधन नहीं मुहैयाजी।
मत रूठो री प्यारी बहना,
तुमको ख़ूब घुमाऊंगा।
सबर करो मैं जल्दी-जल्दी,
खूब बड़ा हो जाऊंगा।
चना-चिरौंजी, गुड़ की पट्टी,
रोज खिलाऊँ लैयाजी।
जादू का घोड़ा लाऊंगा,
उस पर तुझे बिठाऊंगा।
ऐड़ लगाकर, पूंछ दबाकर,
घोड़ा ख़ूब भगाऊंगा।
अम्बर में हम उड़ जाएंगे,
जैसे उड़े चिरैयाजी।