भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उजाले के लिए / सूर्यपाल सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:56, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यपाल सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अँधेरे से लड़ते हुए
चील और बाज के
झपट्टों से बचते हुए
प्रभात का सपना
देखते हुए लोग
सीना तान कर निकले हैं।

अँधेरा किसी को बरजता नहीं
लड़ना ही पड़ता है
आदमी को उजाले के लिए
निरन्तर लगातार
बारम्बार।