भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम और युद्ध / सुरेश बरनवाल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश बरनवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे पास युद्ध है
मेरे पास प्रेम।
आओ बदल लें
तुम प्रेम ले लो
महक जाओ
और हवा बन जाओ
मैं युद्ध लूंगा
उसे पी जाऊंगा
और पानी बन जाऊंगा।
तुमने जहां-जहां रक्त फैलाया है
मुझसे धो देना
और अपने हाथों से क्यारियां बना
उनमें प्रेम बो देना।