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प्रेम और पंचतत्व / मुदित श्रीवास्तव
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प्रेम,
वायु है जो दिखता नहीं
पर होता है महसूस,
जल है जो पारदर्शी है,
जो अपने में सब समेट लेता है
किसी भी रूप में ढल जाता है,
अग्नि है,
जब होता है तो रोशनी देता है
ज्यादा हो जाने पर सब जला देता है
खत्म होने पर सिर्फ़ ख़ाक रह जाता है
आकाश है,
अपार होता है, अनंत होता है
कभी कभी
पहुँच से दूर भी,
पृथ्वी है,
एक खोखली पृथ्वी
जिसमे रहने वाले लोग
चाँद की फरमाइश करते हैं!