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शिनाख़्त का दिन / वरवर राव / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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1

क्या सल्तनत इसे मान लेगी
अगर बग़ावत के चलते
आवारा और बेगैरत
बहादुर बन जाएँ ?
नायक खानदानी होने चाहिए ।

अगर जंगली एकसाथ हो जाएँ,
गारा, लकड़ी और पत्थर जुटाते हुए
बसेरा बनाने लगें;
क्या यह कोई कथा बन जाएगी ?
इतिहास की बुनियाद होनी चाहिए ।

क्या तुम पहाड़ के ऊपर एक दीया जलाओगे
फटेहाल
बुलेट से छिदे गोंड के लिए ?
दीये बड़े लोगों के लिये जलाये जाते हैं ।

2

बेशक, अगर मुझसे उनकी बस्तियों के बारे में पूछा भी जाए
मैं क्या कह सकता हूँ ?
शहरों को बनाकर
वे जंगल की कोख में चले गए –
अगर मुझसे गिनने को कहा जाए
वे साठ थे या तेरह,
मैं सिर्फ़ सितारों की ओर इशारा कर सकता हूँ
जबकि तुम मुआवज़े की फ़ेहरिस्त के साथ अकड़ सकते हो

किसने उनकी नाड़ी काटी और उन्हें नाम दिया
जो जंगल में जने और छोड़े गए ?
शायद वे तुम्हें पहली बार मिले
जनगणना के आँकड़ों
और वोटरों की लिस्ट में;
शायद उन्हें आदिलाबाद के अस्पताल से बाहर किया गया,
या आज स्मारक बनाकर कहा गया
इन्हें पट्टा नहीं मिल सकता है ।

वहाँ,
पेड़ और गढ़े, वादियाँ और चोटियाँ
पंछी और गिरगिट, पानी और आग़
इनसान और जानवर, जंगल साफ़ कर उगाई गई फ़सल, और बसेरे
अन्धेरा और रोशनी,
उन सबके बस एक नाम हैं :
जंगल
जंगल माँ भी है और ख़ुद बच्चा भी ।

जंगल की गोद में बसे
आदिवासियों
और उनकी शक़्ल में पल रहे
जंगल के ख़ौफ़ से,
तुमने ही
उनकी शिनाख़्त की

डर फैलता गया
बोडेनघाट और पिप्पलधारी में
इन्द्रावेल्ली और बाबेझरी में
और सतनाला में
बांस की खपच्चियों से घिरी हुई
उनकी ज़िन्दगी तुमने तहस-नहस कर दी

कनस्तर और कारतूस
खदान के ख़ून और सल्फ़र गैस के साथ
धरती की दरारों में
तुमने उनकी बपतिस्मा का जश्न मनाया
हासिल सिर्फ़ इतना है
अब तुम उन्हें कभी ख़त्म नहीं कर सकते

3

बहादुर उभरते हैं
वे इतिहास की ही पैदाइश हैं
क्या कोई वह तारीख़ बता सकता है
जब आदिवासी पैदा हुए थे ?
जबकि तुमने साल-दर-साल
चालू खाते के लिए
बीस अप्रैल की तारीख तय कर रखी है
लेकिन इस बार
इतिहास की चकाचौंध में लड़खड़ाते हुए
उन्नीस मार्च को ही तुम
देवक की कालकोठरी में घुस पड़े

4

मेरे दिल में मचलती
जंगली फूलों के ऊपर से आती हवा
अब पर्वतों की चोटियों पर लहराती है
आसमान ने जंगल को एक दृश्य में बदल दिया
इन सबसे बेख़बर, गोदावरी अपनी घाटी में
मुरझाती हुई बहती जाती है

5

परसों के लोग शायद कल नहीं रह गए थे;
कल के दावे आज ग़ायब हो चुके होंगे.
फिर भी, इन्द्रावेल्ली परसों भी था, कल भी और आज भी ।

इन्द्रावेल्ली शायद मिल्कीयत नहीं थी
गुज़रे ज़माने के लोगों की
कल के स्मारक उस पर कब्ज़ा नहीं जमा पाए;
लेकिन उस पर उनका हुक़्म नहीं चलेगा
जिन्होंने आज उसे तहस-नहस कर दिया

कबीले के मांस और ख़ून से पोसे हुए
जंगल का ही हुक़्म चलेगा,
आदिम जीवन्तता में सनी हुई
आत्मा ही रह जाएगी;
शहीदों का चुम्बन ज़िन्दा रहेगा

गंगा जीवन की धारा रह जाएगी
लाठी और तलवार उसे बचाएँगी
सारा जंगल ख़त्म कर दिए जाने के बाद भी
उसमें छिपी हुई आग रह जाती है

लेकिन इन्द्रावेल्ली
जिसे अब शहर बना दिया गया
बग़ावत का परचम बनकर रह जाएगा
कल का स्मारक
याददाश्त का संकेत है

यह उनके लिये मील का पत्थर है
जिन्होंने उसे बरबाद कर दिया

इन्द्रावेल्ली ज़िन्दा रहेगा
संघर्ष करती जनता के
शिखर का प्रतीक बनकर

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य