भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झूम्ब / आत्मा रंजन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 13 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आत्मा रंजन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आखिरी बस ने उतारा था उस रोज़
जब पहाड़ी के उस तरफ
गाँव के आखिरी छोर पर
और अचानक बरसने लगी थी बरसात
कि लेनी पड़ी यकायक
जसोदा ताई के छज्जे की शरण
बैठ बेटा चाय पानी कर ले–
के उसके मीठे आग्रह को
ढलती शाम और डेढ़ मील सफ़र के हाथों
पड़ा था जब टालना
तो अभावग्रस्त बूढ़ी ताई ने
भरपूर झिझक के साथ थमा दी थी
बारिश के खिलाफ अपनी झूम्ब

काव्य स्मृतियों में / काव्य निर्मितियों में
अटकी और अटी रह गई
धँसी रह गई कहीं गहरे
वह मासूम झिझक और
जसोदा ताई की वह झूम्ब!

यह कुछ न दे सकने की स्थिति में
खूब-खूब दे डालने का किस्सा है
यह देने की क्षमता से कहीं आगे
देने की भावना का किस्सा है
कुछ इसी तरह की तो है
झूम्ब की भी वृति और निर्मिति भी

अनाज या जिन्स के खाली बोरे को
एक कोने से दूसरे तक धंसा कर
सरल साधारण-सी बनावट में
रच दी जाती है झूम्ब
और बरसाती की शक्ल में
एक सरल-सा उपाय
बौछारों के खिलाफ
ओढ़ने ढंकने को तैयार

छाता न होने की विवशता के आसपास
एक असहाय के लिए सहाय बनती हुई
असहायता पर एक स्वाभिमानी जीत की तरह
प्रकट होती है झूम्ब
बौछारों के खिलाफ एक प्रकट साहस
साधन सुविधाओं के निपट रीत-चूक जाने पर
एक बंजर रेगिस्तान में उग आई
एक संभावना है झूम्ब

अपनी आधुनिक बनावट पर
लाख इतराता फिरे छाता
जानती है झूम्ब
आत्मीय ऊष्मा को समेटने की
कहाँ है उसके पास तमीज़
बखूबी जानती जसोदा ताई
कि विवशता मात्र नहीं है झूम्ब
ढीठ बरसात नहीं लेती जब रुकने का नाम
और हुंकारती ही जाती खूँटे पर बछिया
अकर्मण्य हाथों के साथी
तमाम छाते हो जाते फिर विफल
लगी बरसात में झूम्ब ही दे पाती
दराती पर चलते हाथों का साथ
यूँ झूम्ब ने चुना हमेशा
कर्मशील हाथों का ही साथ!

एक स्वाभिमानी परचम की तरह
लहरा रही है झूम्ब सदियों से
इस बात की तसदीक करती हुई
कि अपने पूर्व परिभाषित उपयोग तक
महदूद नहीं होती हैं चीज़ें
साधारण बनावट इस बोरी की तरह
एक मददगार उपयोग और उपाय की
कहीं भी हो सकती है संभावना
न होने में भी होना
एक सहाय, सम्बल, साहस का
हमारे आस-पास ही अदृश्य कहीं
एक मुकम्मल समाधान है झूम्ब!