भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कायाकल्प / गिरिधर राठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 21 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गिरधर राठी }} फिर क्या हो जाता है कि क्लास-रूम बन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर क्या हो जाता है

कि क्लास-रूम बन जाता है काफ़ी-हाउस

घर मछली बाज़ार?


कोई नहीं सुनता किसी की

मगर खुश-खुश

फेंकते रहते हैं मुस्कानें

चुप्पी पर,

या फिर जड़ देते नग़ीने !


करिश्मे अजीबोग़रीब -

और किसी का हाथ नज़र भी नहीं आता -

पहलू बदलते ही

जार्ज पंचम हो जाते हैं जवाहर लाल !