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बादल रीता.. / सुरेन्द्र डी सोनी
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तुमने
मुझे मारे ताने...
तुलसी ने
हरसिंगार को...
मैं और हरसिंगार तो
चुप ही रहे
सदा की तरह..
नदियाँ
बादलों को
रिझाती आई हैं
ऐसे ही...
एक बादल रीझा
कल भी
अगर नहीं
तो दोनों सखियाँ
देखो उघाड़कर पीठ
आपस में कि
किसने लिखी
आड़ी-तिरछी कविताएँ
नाख़ूनों से
नदियाँ
बादलों को
रिझाती आई हैं
ऐसे ही...
तुमने
मुझे मारे ताने
तुलसी ने
हरसिंगार को
तुम और तुलसी तो
जन्मी हों
अपने ही गर्भ से
मगर
मुझे और हरसिंगार को
न देतीं गर्भ तुम
तो क्या होता..
कोई रीता बादल
भरता न कभी !