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तुम / सुरेन्द्र डी सोनी
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कविता में
यह जो होता है तुम –
चाहे
मेरा हो या तुम्हारा
इसके बारे में
न पूछा जा सकता है
न बताया जा सकता है
तुम्हारा तुम
तुम्हारा अनुभव
मेरा तुम
मेरी वेदना
फिर भी
दोनों के तुम
कहीं न कहीं जाकर
एक तो हो ही जाते हैं
तुम
जिन्होंने सीखा नहीं प्यार
पागलपन की हद तक !