भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिस्से / सुरेन्द्र डी सोनी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 17 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पैरों से जोड़कर
बड़े-बड़े बाँस
सीखा लोगों को देखना
ऊँचाई से...
कहता फिरा
कि ये बाँस
अब हिस्से हैं
मेरे ही शरीर के...
कोई माना ही नहीं…!
आज
जब मैं मरा
सबसे पहले
खोले गए वही बाँस...
अब तो मान लेते...
शरीर के जैसे ही तो हैं बाँस...!