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रिस्तां री राख / हरिमोहन सारस्वत
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आओ
राख उडावां
बुझ्योड़ै रिस्तां री
जूण री किस्तां री
ऊपणां
बै सगळी
कोझी अर माड़ी बातां
जिकी
जाणै अजाणै
बिना बकारयां
आय ऊभी हुगी
आपणै बिच्चाळै
बै बातां
आपरो काम करगी है
मूण्डां सूं नीसर’र
जींवता सगपण चरगी है
अेक भरम हो
अेक सरम ही
रिस्तां बिच्चाळै
वां दोनां
छोड़ दी है लाव
अबै धम्म सूं जा पड़ी है
तळेठी मांय
लाव सणै
रिस्तां भरयोड़ी
बाल्टी.