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एक उत्तर आधुनिक समाज की कथा / रमेश ऋतंभर

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एक आदमी सुबह से शाम तक खेत जोतता है
एक आदमी सुबह से शाम तक फावड़ा चलाता है
एक आदमी सुबह से शाम तक बोझ ढोता है
एक आदमी सुबह से शाम तक जूता सिलता है
तब भी उसे दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं होती
वही एक आदमी खाली झूठ बोलता है
एक आदमी खाली बेईमानी करता है
एक आदमी खाली दलाली करता है
एक आदमी खाली आदर्श बघारता है
तो वह चारों वक़्त ख़ूब घी-मलीदा उड़ाता है
प्रिय पाठको! यह किसी आदिम-समाज की कथा नहीं
एक उत्तर-आधुनिक सभ्य समाज की कथा है,
जिसके पात्र, घटना और परिस्थितियाँ
सबके सब वास्तविक हैं
और जिनका कल्पना से कोई भी सम्बन्ध नहीं।