अवज्ञा / रमेश ऋतंभर
अवज्ञा से ही शुरू होता है ज्ञान का पहला पाठ
हमारे आदिम पुरखे आदम और हव्वा ने
यदि अवज्ञा कर चखा न होता ज्ञान का सेव
और हुए न होते स्वर्ग से निर्वासित
तो हमारी ज्ञान की यात्रा शुरू ही नहीं हो पाती
और हम तब रच नहीं पाते इस दुनिया का इतना संरजाम।
यदि आदि शिशु ने अवज्ञा कर
नहीं जलाये होते आग में अपने कोमल हाथ
तो आग का धर्म क्या है
यह हम कभी नहीं जान पाते
यदि कोलम्बस ने परम्परित मान्यताओं की अवज्ञा कर
शुरू नहीं करता समुद्री यात्राओं का अनवरत सिलसिला
तो इस दुनिया का नक़्शा
इतना सुन्दर और प्यारा नहीं होता।
यदि जङ शास्त्र की अवज्ञा कर
ब्रूनो ने नहीं किया होता अग्नि-मृत्यु का वरण
सुकरात ने नहीं पिया होता जहर
गाँधी ने नहीं खाई होती लाठियाँ व गोलियाँ
तो हम अभी तक पङे होते
अज्ञान और गुलामी के अन्धे युग में।
यदि भीषण कष्ट से घबराकर
तुम कभी भी नहीं करोगे अवज्ञा
बने रहोगे हमेशा लकीर का फकीर
तो तुम कभी भी नहीं हो पाओगे ज्ञानवान
और न कभी कहला ही पाओगे
आदम-हव्वा कि असली सन्तान।