भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपने हिस्से का सच / रमेश ऋतंभर
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 17 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश ऋतंभर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दिल्ली में भी कई-कई नरकटियागंज* हैं
सिर्फ़ सेंट्रल दिल्ली ही नहीं है दिल्ली
दिल्ली जहाँ है, वहाँ गंदगी भी है
कूड़ा-करकट भी है
धूल-धुंआ भी है
पानी का हाहाकार भी है
सिर्फ चकाचौंध नहीं है दिल्ली
दिल्ली जहाँ है, वहाँ बीमारी भी है
परेशानी भी है
ठेलमठेल भी है
और भागमभाग भी है
सिर्फ एयरकन्डीशड नहीं है दिल्ली
आखिर किस दिल्ली की आस में
हम भागे चले आये दिल्ली
यह सेंट्रल दिल्ली तो नहीं आयेगा
हमारे हिस्से कभी।
चाहे हमारे जैसे लोग, जहाँ भी रहे
उनके हिस्से तो नरकटियागंज ही आयेगा
यह सेंट्रल दिल्ली नहीं...
तो फिर किसी दिल्ली की आस में
हम भाग चले आये दिल्ली।