भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सबसे ऊपर मनुष्य / रमेश ऋतंभर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 17 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश ऋतंभर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हें मनुष्य से प्यार करना था
तुम जाति, सम्प्रदाय, नस्ल व भाषा से प्यार कर बैठे।
तुम्हें देश से प्यार करना था
तुम दल व नेता से प्यार कर बैठे।
तुम्हें ईश्वर से प्यार करना था
तुम धर्म गुरुओं व ठेकेदारों से प्यार कर बैठे।
तुम्हें प्रकृति से प्यार करना था
तुम बनावटीपन से प्यार कर बैठे।
तुम्हें जीवन से प्यार करना था
तुम मोक्ष से प्यार कर बैठे।
तुम्हें लोक से प्यार करना था
तुम परलोक से प्यार कर बैठे।
अब तुम्हारे प्यार का क्या?
तुम्हारा कहना / मानना है कि
'मेरा प्यार ही सही है'
अब तुम्हें कौन समझाए कि
सम्प्रदाय, जाति, नस्ल, भाषादि से भी बहुत ऊपर है मनुष्य
'सबसे ऊपर मनुष्य।'