भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
न नए साल का तोहफा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नए साल में दादाजी ने,
तोहफा दिया किताब का।
यह किताब थी बड़े मजे की,
कविता और कहानी की।
सिर पर कद्दू लिए छपी थी,
फोटू बूढ़ी नानी की।
छपी हुई थी *माथा पच्ची*,
गणित, गुणा और भाग का।
कार्टून थे बड़े मजे के,
हमें हँसाया जी भरके।
लोट पोट हो गए हम सभी,
थके बहुत ही हँस-हँस के।
मेंढक बैठा टाई पहनकर,
सूट बूट टिप टॉप था।
आगे वाले एक पेज पर,
चित्र छपा था बिल्ली का।
कई रास्तों के भीतर था,
एक रास्ता दिल्ली का।
कैसे बिल्ली, दिल्ली पहुँचे,
माँगा गया जबाब था।
बाल पत्रिकाएँ पढ़ने से,
बढ़ता ज्ञान हमारा है।
खुशियों की चिट्ठी भीतर,
पहुँचाता मन हरकारा है।
दादाजी के माना हमनें,
लोहा तेज दिमाग़ का।