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कौआ बोला / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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कौआ बोला काँव-काँव जी
बार-बार बस काँव-काँव जी।

बोली मुन्नी, छत पर चलना,
मुझे अभी कौए से मिलना।
कौआ सोता कहाँ बताओ?
कथा अभी उसकी सुनाओजी।

कौआ सुबह-सुबह क्यों आता?
खुद का घर क्यों नहीं बनाता?
अपनी माँ से लड़ता है क्या,
बात मुझे सच्ची बताओजी।

कहती दादी, कौआ आया
ख़बर कोई अच्छी-सी लाया।
अतिथि कोई है आनेवाला,
चाय नाश्ता तो बनाओजी।

दादी की बातें क्या सच हैं,
बातें क्या सच में ही सच हैं।
या ये बातें मनगढंत हैं,
मुझको यह सच-सच बताओजी।