Last modified on 21 अगस्त 2020, at 22:17

जब नाना ने रटवाया था / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:17, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साल गया है मस्ती करते,
करते ता-ता थैया रे।

लोहड़ी, होली, दीवाली की,
तीजा कि ढेरों यादें,
क़ैद पड़ीं गुल्ली दीदी के,
मोबाइल में सब बातें।
क़ैद हुई दादी संग रोटी,
खाती एक बिलैया रे।

दादा दादी की शादी का,
स्वर्ण जयंती साल मना।
कई दिनों के इंतज़ार का,
था साकार हुआ सपना।
उन यादों की मन में उड़ती,
रहती अब कनकैया रे।

नये साल का स्वागत तो है,
बीता भी पर अनभूला।
नहीं झूलना बंद करेंगे,
पिछली खुशियों का झूला।
जब नाना ने रटवाया था,
अद्धा पौन सवैया रे।