भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठ बोलने की सजा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बाघ आ गया बाघ आ गया,
कहकर चरवाहा चिल्लाया।
आए गाँव के लोग वहाँ तो,
बाघ किसी ने वहाँ न पाया।
झूठ बोलकर चरवाहे ने,
बार-बार विश्वास गंवाया।
किंतु बाघ जब सच में आया,
कोई बचाने उसे न आया।
झूठ बोलने वालों का तो,
हाल यही है होता आया।
दुनिया वालों को ऐसा यह,
काम कभी बिलकुल न भाया।