भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंदर जी की सत्य कथा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दाढ़ी के डिब्बे से बंदर,
भाग गया लेकर सामान।
दाढ़ी उसकी बहुत बड़ी है,
अभी-अभी आया है ध्यान।
लगा गाल में साबुन उसने,
रेजर ख़ूब चलाई।
दाढ़ी में से नदी खून की,
तेजी से बह आई।
घबराकर बंदर भैया ने,
फेंकी रेजर ब्लैड।
रोते-रोते बैठ गए वे,
पकड़े अपना पेट।
नकल किसी की भी करने से,
होता है नुकसान।
बंदरजी की सत्य कथा यह,
सुनो खोलकर कान।