भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़े बेशरम / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:57, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कचरा फेका बीच सड़क पर,
बड़े बेशरम।
टोकनियों में लाये भर भर,
बड़े बेशरम।

दफ्तर की सीढी पर थूका,
पान चबाकर।
बीड़ी फेंकी गलियारे में,
धुंआं उड़ाकर।
फेंकी पन्नी चौराहे पर,
बड़े बेशरम।

मूंगफली खाकर छिलकों को,
छोड़ दिया है।
बीच सड़क पर एक पटाखा,
फोड़ दिया है।
काग़ज़ फेके घर के बाहर,
बड़े बेशरम।

इतनी तेज चलते गाड़ी,
डर लगता है।
चिड़िया घर के जैसा आज,
शहर लगता है।
बीच सड़क पर मोबाइल पर,
बड़े बेशरम।

आफिस से आये हो घर में,
हाथ न धोये।
चप्पल जूते किचिन रूम तक,
पग पर ढोये।
नहीं रहा अम्मा का अब डर,
बड़े बेशरम।