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वृक्षों को भगवान् समझतीं / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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अम्मा रोज़ पूजतीं पीपल,
चाची बरगद को जल देतीं।
बैठ सामने आम वृक्ष के,
दादी पुरा कथाएँ कहतीं।

बड़ी दीदियों नेतो उठकर,
हर दिन वृक्ष बिही के पूजे।
बदले में इन वृक्षों ने भी,
दिए हमें फल मीठे मीठे।

भर-भर लोटे नानी अम्मा,
तुलसी पर जल रोज़ चढ़ातीं।
इसी वृक्ष के तुलसी दल का,
रोज़ राम को भोग लगातीं।

कभी ठण्ड में नीम तले ही,
भाभी खटिया रोज़ सजातीं।
गंध निबोली की जब पातीं,
खुशियों से पुलकित हो जातीं

सदियों से यह हमें पता है,
वृक्ष हमें जीवन देते हैं।
भारत की नारी ने इससे,
ही तो वृक्ष सदा पूजे हैं।

दादी नानी अम्मा चाची,
सब वृक्षों की पूजा करतीं।
नहीं वृक्ष को वृक्ष मानतीं,
उनको तो भगवान् समझतीं।

वृक्ष बचेंगे तो ही दुनियाँ,
का अस्तित्व रहेगा कायम।
वृक्ष न होंगे जब इस जग में,
कहाँ बचेंगे, हम-तुम, तुम-हम।