भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीढि़यां / राजेन्द्र उपाध्याय

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:25, 22 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र उपाध्याय |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सीढि़याँ रहीं हैं घर में शुरू से
सीढि़यों का रिश्ता है घर से शुरू से
सीढि़याँ रहीं हैं जैसे रही हैं पीढि़याँ
सीढि़याँ रहीं है जैसे रही हैं नाडि़याँ शरीर में

दादा के पास थी लकड़ी की सीढ़ी
जिस पर चढ़कर वे जाते थे कवेलू फेरने
बारशि से पहले

दादी पूछती थी क्या सब्जी बनेगी आज
घर में तो कोई सब्जी नहीं है
तो दादा उस सीढ़ी पर चढ़कर जाते थे छत पर
जहाँ से वे बड़े-बड़े कददू उतार लाते थे।

मैं जान नहीं पाता था
रात को कौन आकर छत पर उनको रख जाता था?

सीढि़यों पर चढ़कर जाता था मोर को देखने
जामुन पर चढ़ने के लिए भी वह काम आती थी।

नाना अक्सर उस सीढ़ी से चढ़ते थे झंडा फहराने
पर कभी-कभी कुएँ की सफ़ाई करने उतरते भी थे उससे

दादा और नाना सोने की सीढि़यों का सपना देखते थे
और स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने वाले रावण की कहानियाँ सुनाते थे
सीढि़याँ रही हैं दादा के घर में
सीढि़याँ रही हैं दादी के घर में
सीढि़याँ रही हैं नाना के घर में
सीढि़याँ रही हैं नानी के घर में

लकड़ी की सीढ़ी चली गई दादा दादी नाना नानी के साथ
लोहे की सीढ़ी आ गई मामा मामी चाचा चाची के पास

मेरे पास कोई सीढ़ी नहीं
जिससे मैं उम्र की सीढि़याँ चढूं
या उतरू।

एक कुएँ के अंधेरे में उतरना है अब
बगैर सीढ़ी के
वहाँ से वापस नहीं लौटा जा सकता
क्योंकि सीढ़ी नहीं है।

राजधानी में नहीं रहती सीढि़याँ घरों में
कभी-कभी चलती फिरती दिख जाती है
कहीं पुताई के लिए जाती हुई
या कहीं आग बुझाने के लिए जाती हुई

कहीं-कहीं राजमार्गो पर भी दिख जाती हैं वे
जब कोई बल्ब बदलना होता है
राजधानी में गाडि़याँ ढोती हैं सीढि़यों को

कभी-कभी किसी बनते मकान में
मजदूर इस्तेमाल करते हैं सीढ़ी
सीढ़ी और बीड़ी मज़दूर के ही काम आती है
कभी किसी नाटक में मंच पर दिख जाती है कोई सीढ़ी
अभिनेता जिससे कई तरह के काम लेते हैं
बैठते हैं दौड़ते हैं खड़े हो जाते हैं उस पर
लुकाछिपी का खेल खेलते हैं प्रेमी
कभी वह पेड हो जाती है
और रेल बस की सीट भी।

सफाई वाले आते हैं हमारे घरों में
सीढि़याँ लेकर
सोचता हॅूं उनसे ले लूं सीढ़ी
कुछ देर उस पर चढूं उतरू इतराऊँ।