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बरफ के गोले / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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आई है अब गरमी भोले,
खाएँ चलो बरफ के गोले।
छुपन छुपाई खेल खेलकर,
बदन पसीने से लथपथ है।
दौड़ दौड़कर हार चुके हैं,
बहुत हो चुकी अब गपशप है।
बंद अकल के जो पट खोले
खाएँ चलो बरफ के गोले।
मां ने नीबू के रस वाला,
दिन में शरबत ख़ूब पिलाया।
लाल लाल तरबूज काटकर,
मीठा मीठा मुझे खिलाया।
बंद द्वार मुश्किल से खोले।
खाएँ चलो बरफ के गोले।
तीन बरफ के ठंडे गोले,
अभी अभी मुन्नू ने खाए।
रंग बिरंगे सजे सजीले,
दो गन्नूजी घर ले आए।
'एक मुझे दो' बापू बोले।
खाएँ चलो बरफ के गोले।
पर ज़्यादा गोले खाना भी,
होता बहुत हानिकारक है।
बीमारी का डर हॊता है।
नहीं ज़रा भी इसमें शक है।
बार-बार फिर भी मन डोले।
खाएँ चलो बरफ के गोले।