मुझे याद है बचपन में जब,
आता था कठपुतली वाला।
एक बड़ा-सा मंच सजाता,
कठपुतली का खेल दिखाता।
किसी वृद्ध कठपुतले के संग,
कठपुतली का ब्याह रचाता।
दर्शक पीट तालियाँ हंसते,
खुद हंसता कठपुतली वाला।
कठपुतली फिर शाला जाती।
उधम करती नाच दिखाती।
बस्ता फेंक-फांक टेबल पर,
सर की कुर्सी पर चढ़ जाती।
हो-हल्ला हुड़दंग करती,
हो जाता स्कूल निकाला।
उसकी माँ रोटी बनवाती,
उससे झाड़ू भी लगवाती।
पर कठपुतली आसमान में,
झाड़ू लेकर ही उड़ जाती।
चिल्लाती हे राम पड़ा यह,
किस पागल लड़की से पाला।
फिर बूढ़ा कठपुतला आता,
उसको अपने घर ले जाता।
उसको तौर-तरीके जग के,
नियम-कायदे सब सिखलाता।
धीरे-धीरे खोल दिया था,
बंद पड़ी बुद्धि का ताला।