भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जन मन गण का गान है हिन्दी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:27, 28 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोने की अब खान है हिन्दी।
भारत की पहचान है हिन्दी।

सारा देश बँधा है इसमें,
पक्की एक गठान है हिन्दी।

दूरन देशों पहुँच गई अब,
मान और सम्मान है हिन्दी।

अपनी प्यारी न्यारी भाषा,
हिन्दू, सिख पठान है हिन्दी।

भारत माता कि बिंदी है,
आँख, नाक और कान है हिन्दी।

बड़ी सरल सीधी भाषा है,
भाषाओं की शान है हिन्दी।

रची बसी भारत माता में,
सत्य, अहिंसा ज्ञान है हिन्दी।

चार दिशाएँ इससे गुंजित,
जन-गण-मन का गान है हिन्दी।