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भैयाजी को अच्छी लगती / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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भैयाजी को अच्छी लगती,
पहली की हिन्दी पुस्तक।
पहला पाठ खुला तो दिखता,
जन मन गण का गान।
भैयाजी को हो जाता है,
देश प्रेम का भान।
पाठ दूसरा खुला तो होती,
क ख ग घ की दस्तक।
आगे के पाठों पर होती,
ख़ास फलों की मार।
इमली दिखती आम लटकते,
दिखते लाल अनार।
पन्ना जब आगे पलटा तो,
दिखते कार मेट्रो रथ।
अंतिम पन्नों पर दिख जाते,
सूरज तारे चाँद।
उसी पाठ में बने हुए हैं,
आँख नाक और कान।
सबसे नीचे चलता दिखता,
काला एंजिन फक-फक-फक।