भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पसोपेश में छत बेचारी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:51, 28 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फर्श रोज़ मुस्कराकर कहता,
ऐसी क्या नाराजी।
दूर दूर से हाय हलो क्यों,
पास क्यों नहीं आतीं।
छत बेचारी पसोपेश में,
मिलने कैसे जाऊँ।
मिलने का अंजाम मुर्ख को,
कैसे अब समझाऊँ।