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गंगा बहुत उदास / जगदीश व्योम
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गंगा बहुत उदास
भगीरथ कहाँ गए
लहरों ने
अपने तट खोए
तट लगते अब
रोए रोए
कूड़ा, कचरा
नाली, नाला
सब कुछ है
गंगा में डाला
हम इतने बेशर्म
इसी को
कहते रहे विकास
भगीरथ कहाँ गए
हम बेहद
हो गए सयाने
पाप किए
जाने अनजाने
सदियों जिसने
हमको पाला
हमने उसको
विष दे डाला
झेल रही
अपनी सन्तति का
अभिशापित संत्रास
भगीरथ कहाँ गए
कहाँ गए
अनुबन्ध पुराने
यह तो कोई
भगीरथ जाने
सगर पुत्र
फिर से अकुलाए
गंगा कौन
बचाकर लाए
पूछ रहे
जन जन के मन से
गंगा के उच्छ्वास
भगीरथ कहाँ गए
गंगा बहुत उदास
भगीरथ कहाँ गए ।