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याद बहुत आये / सर्वेश अस्थाना

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याद बहुत आये
आज मुझे तुम याद बहुत आये
जब सूरज चल पड़ा निशा के द्वार दिशा
मेरे मन में वियोग की फैली गहन व्यथा
मन की सारी सृष्टि बदलने लगी रूप
भले रही तन की स्थिति थी यथा यथा।
जले दीप की ज्योति शिखा में तुम आये

अम्बर पर तारों के बूटे झिलमिल चमके,
और ज्योत्स्ना के दामन चन्दा चहके।
झरते बेला के श्वेत पुष्प बिछते बिछते,
कर प्रणय प्रतीक्षा धरती का आँचल महके।
मादक सुरभि मुझे छू छू कर जाये।
आज मुझे तुम याद बहुत आये।।

तन में हिलोर उठती है साहिल पाने की,
है बड़ी परीक्षा लेकिन भंवर बचाने की।
स्वर्णिम भावों की छोटी सी नौका लेकर,
लहर लहर यात्रा है सागर पाने की।
लेकिन अभिलाषा के कपोत वापस पाये।
आज मुझे तुम याद बहुत आये।।