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द्वार पर याचक खड़ा है दान दे दो / सर्वेश अस्थाना

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द्वार पर याचक खड़ा है दान दे दो
फिर वही अपनी मुझे मुस्कान दे दो।
तुम हमारे प्रेम की आराधना हो
हृदय के हर व्याकरण की व्यंजना हो।
जो हमेशा मूर्त बन कर मुस्कुराई,
मेरे अंतस्थल की शाश्वत भावना हो।
जो सदा जीवित रहे अरमान दे दो,
फिर वही अपनी मुझे मुस्कान दे दो।

मेघ क्या जल के बिना रह पायेगा,
पुष्प क्या बिन गन्ध के रह पायेगा।
साथ में यदि स्वर्ण किरणे ना मिले
सूर्य क्या नभ में कभी में रह पाएगा।
रिक्त नभ को प्रेम का दिनमान देदो।
फिर वही अपनी मुझे मुस्कान दे दो।।

इस जगत की दीप्ति सारी मर रही है,
कांति मन की पतझरो सी झर रही है।
कुछ नही रुचता मुझे सौगंध जग की,
सृष्टि मुझ पर मृत्यु वर्षा कर रही है।
एक अंतिम बार जीवन दान दे दो।
फिर वही अपनी मुझे मुस्कान दे दो।।