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बूँदों ने क्या छुआ देह को / शशिकान्त गीते
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बूँदों ने क्या छुआ देह को
जले ठूँठ हरियाए ।
महक उठी धरती
सारंग के
लगे नाचने पाँव
रास नहीं आएगा किसको
भला, भला बदलाव
अँकुराए आँखों में अनगिन
सपने दूध नहाए
बूँदों ने क्या छुआ देह को
जले ठूँठ हरियाए ।
मीठी- मीठी हवा
पुलक उठते हैं
मरियल पात
देर हुई पर मौसम ने दी
क्या प्यारी सौगात
जैसे बरसों बाद किसी
प्रिय का प्यारा खत आए
बूँदों ने क्या छुआ देह को
जले ठूँठ हरियाए ।