Last modified on 31 अगस्त 2020, at 16:34

ओ मेरे मन / शशिकान्त गीते

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:34, 31 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिकान्त गीते |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ओ मेरे मन !
सागर से मन !
हिरना मत बन ।

नेह नदी ढूँढ़े
दो बून्दें ही भारी
रेतीले रिश्तों की
छवियाँ रतनारी
उकसाए प्यास
रचे, पाँव-पाँव
कोरी भटकन ।

मरूथल में तूने जो
दूब- बीज बोए
बादल से, खोने का
रोना मत रोए
हर युग में
श्रम से आबाद हुए
ऊसर, निर्जन ।