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क्यों न पहनें औरतें गहने / असद ज़ैदी

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क्यों न पहनें औरतें गहने

इस तरह हो सकती है एक कविता शुरू
सोचा भूल न जाऊँ तो लिख लिया
एक काग़ज़ के पुरज़े पर
जो बाजी के यहाँ छूट गया
फिर मैं भी उसे भूल गया ।

काग़ज़ के पुरज़े जीते हैं
अराजक और रहस्यमय जीवन ।

एक बरस बाद उसने पूछा
"क्या लिखने वाले थे तुम ?"

बाजी कुछ बीमार थी, मैं उसका
हाथ थामे बैठा था, वह
आँखें बन्द किए लेटी थी ।

"कि किसलिए गहने नहीं पहनने चाहिए औरतों को ?
या कि उनकी मर्ज़ी है... बेशक पहनें ?"

मैं झेंप गया, कहा उससे :
"तंग न करो, बाजी !"

ओ बे-रहम बहना, पूछकर
तूने सारी बात बिगाड़ दी,
मेरे दिमाग़ में निबन्ध नहीं था,
कविता थी कविता !

अब खो गई हमेशा के लिए ।