भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्षा बेला / कुलमणि देवकोटा

Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:36, 4 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुलमणि देवकोटा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुलक-प्रपञ्चले हराभरा वसुन्धरा
सघन घनावली गगनमा व्याप्त-व्याप्त जलधरा
वसुन्धरा-गगनको अन्तरालमा
गौंथली-बथान क्या मजामा नाच्छ चिबिरा !

हराभरा प्रशाखामाथि वृक्ष-वृक्षका
धोबिनी चरीहरू अनन्त चिबिराउँदा
प्रवीर सात अश्व सूर्यका पछारिंदा
गगनमा माथि मेघसैन्य गड्गडाउँदा।

गडर्र गड् गडरं घड् घडर्रको
चिरिर्र चिर्र च्वी चुच्ची चुचुर्र चुर्र चुर्रको
सुस्निग्ध ध्यान ब्रह्ममा शबल विमिश्रित
दशै दिशा ध्वनित नवीन छन्दमा प्रहर्षित ।

................................................
भारती, २।३, भदौ २००७ .