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युग / कुलमणि देवकोटा

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चारैतिर हल्ला छ, गल्ला छैन !
मथिङ्गल छैन, केवल फचिङ्गल !
मथिङ्गल छैन, केवल कचिङ्गल !
बोतल छ, होटेल छ,
खातल-खोतल छ, टोटल छैन !

हुडुलो छ, ढर्रा छ,
आलोचना-छर्रा छ,
विरोध छ, गोदागोद छ !

'गोप' छ, छोपाछोप छ,
मोलतोल छ, पोलापोल छ,
सच्चाइ ढाक्न खोल-खोल छ !

भूगोलले त भनेकै थियो-
'दुनियाँ गोल छ',
साथी, युग यो अनमोल छ
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छरिएका फूल-बाट, २०१५ / रचनाकाल २०१४