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पीले रंग का अधन्ना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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पीले रंग का एक अधन्ना,
दादाजी को अब भी याद।
इसी अध न्ने से दादाजी,
आधा पाव जलेबी लाते।
गरम दूध में डूबा-डूबा कर,
मजे-मजे से छककर खाते।
कितनी अच्छी अहा! जलेबी,
देते जाते थे वे दाद।
इसी अधन्ने से दादाजी,
जी भर खाते पिंड खजूर।
दादाजी की माँ कहती थीं
इससे होती सर्दी दूर।
इसी नाश्ते से देते थे,
अपने भीतर पानी खाद।
इसी अधन्ने की यादों से,
थामे वे बचपन की डोर।
इसी डोर से उड़ा पतंगें,
होते रहते भाव विभोर।
यही भाव उनके ओंठों पर,
रखे हंसी अब तक आबाद।
टी.वी. में से निकला हाथ
लेकर गरम जलेबी साथ
बोला गरम जलेबी खाओ
रो ओ मत अब चुप हो जाओ