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जिनसे सब रानाइयाँ थीं ,मेरी इस तहरीर में / अजय सहाब

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जिनसे सब रानाइयाँ थीं ,मेरी इस तहरीर में
अब तो वो रिश्ते सिमट कर रह गए तस्वीर में

मेरे हाथों की लकीरें सब उसी के नाम थीं
बस वही इक इक शख़्स जो ,था ही नहीं तक़दीर में

ख़्वाब सारे , ख़्वाब ही थे ,ख़्वाब बन कर रह गए
कुछ हक़ीक़त काश होती ,ख़्वाब की ताबीर में

एक पल के प्यार की ऐसी सज़ा हमको मिली
उम्र भर महबूस रहना ,दर्द की ज़ंजीर में

चांदनी में आज कुछ गहरी उदासी है 'सहाब'
दर्द मेरा मिल गया है चाँद की तनवीर में