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रात जब टूट कर बिखर जाये / अजय सहाब
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रात जब टूट कर बिखर जाये
जागने वाला फिर किधर जाये ?
उम्र गुज़री है जैसे कानों से
सरसराती हवा गुज़र जाये
अपने यादें भी साथ ले जा तू
ये तेरा क़र्ज़ भी उतर जाये
ज़िन्दगी बाद में गुज़ारेंगे
हिज्र की रात तो गुज़र जाये
सिर्फ़ तू है ,तेरा नज़ारा है
जिस तरफ़ भी मेरी नज़र जाये
अब तो तू भी नहीं है धड़कन में
दिल का क्या काम अब वो मर जाये