भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौसम की तब्दीली कहिये या पतझड़ का बहाना था / अंबर खरबंदा
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 5 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंबर खरबंदा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मौसम की तब्दीली कहिये या पतझड़ का बहाना था
पेड़ को तो बस पीले पत्तों से छुटकारा पाना था
रेशा-रेशा हो कर अब बिखरी है मेरे आँगन में
रिश्तों की वो चादर जिसका वो ताना मैं बाना था
बादल,बरखा, जाम, सुराही, उनकी यादें, तन्हाई
तुझको तो ऐ मेरी तौबा ! शाम ढले मर जाना था