भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरकारी हुक्म / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:42, 6 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कान खोलकर सुन ले बिल्ली,
तुरत छोड़ दे चूहे खाना।
दिल्ली से गूगल पर आया,
आज सबेरे ही परवाना।
बड़े खाएंगे छोटों को तो,
होगा बहन जुर्म यह भारी।
ऐसा वैसा हुक्म नहीं यह,
यह तो हुक्म हुआ सरकारी।
पूँछतांछ में लगीं बिल्लियाँ,
क्या ऐसा आदेश हुआ है।
अगर हुआ है सच में ऐसा,
ऐसा क्यों परिवेश हुआ है।
अब तक तो सब बड़े लोग ही,
छोटों को हैं आये खाते।
सदियों के नियम कायदे,
बिना बात के क्यों पलटाते।