भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चित्र बना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 6 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चित्र बना रे चित्र बना,
कुछ बिरला कुछ घना-घना।
चित्र बना रे चित्र बना।
जिसमें ऊँचा पर्वत हो।
पर्वत पर बा दल रत हो।
बादल जोरों से गरजे।
अर्रा कर पानी बरसे।
आंधी से बूढ़े खजूर का,
जोर-जोर से हिले तना।
चित्र बना रे...
फटर-फटर बज उठें किवाड़।
होनें लगें बंद सब द्वार।
बूढ़े छुपें रजाई में।
बच्चे भिड़ें पढाई में।
ले कर अम्मा आ जाएँ,
चाय कुरकुरे भुना चना।
चित्र बना रे...
बिजली कड़के जोरों से।
खिड़की भड़के शोरों से॥
टूटी डाल झकोरों से।
आम झड़ गए बोरों से।
बीनें जितना बीन सकें,
कौन करेगा अभी मना।
चित्र बना रे चित्र बना।