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ले गए पेड़ लुटेरे / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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मैं हूँ नन्हीं परी, बगल में,
पंख छुपे हैं मेरे।
आसमान से उड़कर आई,
बिलकुल सुबह सवेरे।
टंग, टूथ ब्रश, मंजन भूला,
पेस्ट करूँ मैं कैसे।
कैसे यह सामान खरीदूं,
नहीं जेब में पैसे।
नहीं अभी तक मुँह धो पाई,
इससे आलस घेरे।
कच्चे दाँत दूधवाले हैं,
कैसे इन्हें बचाऊँ।
सोच रही हूँ नीम वृक्ष से,
दातुन लेकर आऊँ।
नहीं दिख रहे नीम वृक्ष पर,
लगा लिए कई फेरे।
अगर नीम के पेड़ कहीं,
दो चार मुझे मिल जाते।
आसमान से रोज़ उतरकर,
दातुन लेने आते।
पता नहीं कब लूट यहाँ से,
ले गए पेड़ लुटेरे।