भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो भी हैं जो हाथ में लेकर शमशीर / रमेश तन्हा
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:27, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वो भी हैं जो हाथ में लेकर शमशीर
कत्लो-ग़ारत फैलाते हैं बे-पीर
कितने बे-दर्दो-बे-हिस हैं वो लोग
है हर कसो-नाकस ही उनका नखचीर।