भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

है ज़द पे कौन-कौन ठिकाना तो है नहीं / अंबर खरबंदा

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:30, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंबर खरबंदा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
है ज़द पे कौन-कौन ठिकाना तो है नहीं
कुछ साफ़-साफ़ उसका निशाना तो है नहीं

सच है के सच की राह तो सीधी है, साफ़ है
ये भी है सच, के सच का ज़माना तो है नहीं

रखता है बेवफ़ाई का इल्ज़ाम मेरे सर
अब उसके पास और बहाना तो है नहीं

मिलता है कुल जहां से मुझे प्यार दोस्तो!
हालांके मेरे पास ख़जाना तो है नहीं

बस इक ग़ज़ल में कैसे सुना दूँ मैं हाले-दिल
इतना भी मुख़्तसर ये फ़साना तो है नहीं