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मुझ को तो मश्क़-ए-समाअ'त है चलो तुम बोलो / नुसरत मेहदी

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मुझ को तो मश्क़-ए-समाअ'त है चलो तुम बोलो
तुम को सुनना मिरी आदत है चलो तुम बोलो

मैं ने ख़ामोशी को आसान किया है ख़ुद पर
मेरी बरसों की रियाज़त है चलो तुम बोलो

तुम से आबाद है बातों की तिलिस्मी दुनिया
ये तुम्हारी भी ज़रूरत है चलो तुम बोलो

हमा-तन-गोश ज़माना है अभी मौक़ा है
तुम को हासिल ये सुहूलत है चलो तुम बोलो

हुक्म गोयाई का जब तक न मिले 'नुसरत' को
तब तलक तुम को इजाज़त है चलो तुम बोलो