Last modified on 7 सितम्बर 2020, at 21:02

समय और मेरी कहानी-3 / अशोक शाह

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:02, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं विकास की कहानी भर नहीं
जो हाथों में लहराती
लिये क्रूर सफलता की ध्वजा
कुचलती और मसलती जाए
संजीदगी और संवेदना

मेरी ज़िन्दगी बाज़ार के
सिक्के का दो पहलू भी नहीं
कि चन्द सिक्के पाकर
ग़रीब से हो जाए अमीर

मैं एक पतन-कथा भी हूँ
जब-जब बढ़तीं है महत्वकांक्षाएँ
गिर जाता हूँ खनखनाता
समय की फ़र्श पर

हाँ, मैं मृत्यु भी हूँ
और उससे आगे भी

जीवन की तरह नदियों में बहता रहा हूँ
आकाश में उड़ता वृक्षों पर खिलता
रूपों में दिखता रहा हूँ

मृत्यु मुझसे अलग नहीं, साथ-साथ चलती है
वह कहीं से आती नहीं
जब तक मैं हूँ, जाती नहीं

वह डरती न डराती है
क़ब्रस्तान के पत्थरों के बीच
हरी घास-सा उग आती है
हवा में मेरे पैरों का निशान लिये घूमती है

हँसता हूँ, रोता हूँ
जो भी मैं करता हॅूं
वह देख लेती है
पर कभी रोती नहीं हँसती नहीं

उसका कोई घर नहीं
दिल में मेरे रहती है
मन में वह पैर पसार
दुनिया धांग आती है
और गले में बाँहे डाल
रोज मुझे वह चूमती है

मैं और मृत्यु दोनों
रूप नये रोज धरते है
एक दूसरे से छिपते
आँख मिचैली भी खेलतें हैं

जिस कक्षा में पढ़ा था
वहीं वह पढ़ाती है
हयात की अनगिनत तस्वीरें
वह मुझे दिखाती है

जीवन का रोमांच वह
एकदम विशुद्ध है
अलग कुछ मैं नहीं
अलग मुझसे वह भी नहीं

रोज़ यही पहला पाठ तो
मुझे वह पढ़ाती है
मैं मृत्यु का जीवन हूँ
मृत्यु मेरी ज़िन्दगी है